'ईवीएम वाशिंग मशीन में धुली' क्यों जरूरी?
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की किताब 'ईवीएम वाशिंग मशीन में धुली' हिन्दुत्व की आंधी में बह रही देश की जनता को यह बताने के
लिए समर्पित है कि चुनाव की निष्पक्षता और लेवल प्लेइंग फील्ड लोकतंत्र की बुनियादी
जरूरत है । पुस्तक में बताया गया है कि भारतीय जनता पार्टी जब सत्ता में में नहीं
थी तो ईवीएम के खिलाफ थी और अब यह उसकी लाड़ली बहना बन गई है । स्थिति यह है कि
ईवीएम के खिलाफ बोलो तो भाजपा का पूरा इको सिस्टम परेशान हो जाता है । यह किताब
ईवीएम पर भाजपा के यू टर्न की कहानी है और प्रस्तावना व भूमिका से पहले बताया गया
है कि ईवीएम का मामला क्यों गंभीर है ।
2010 में दो किताबों से साबित किया जा चुका है कि हैक किये जा सकते हैं ।
ईवीएम का बचाव यही है कि आदर्श स्थितियों में अधिकारियों की निगरानी में रहता है ।
वीवी पैट लगाने का आदेश और फिर उनकी गिनती नहीं होना, और इसमें भी गड़बड़ी ध्यान देने योग्य बात है। ईवीएम सेट
नहीं होते हैं तो भाजपा परेशान क्यों होती है, बचाव क्यों करती है । हरियाणा और फिर महाराष्ट्र व झारखंड
के नतीजों से उसपर आरोप साबित हुआ है । ईवीएम से संबंधित तमाम आरोपों का जवाब ठोस
और संतोषजनक नहीं है । बैट्री चार्ज रहना सबसे आश्चर्यजनक है और उससे संबंधित जवाब
भी यकीन योग्य नहीं है ।
इन बिन्दुओं के अलावा मुद्दा यह नहीं है कि ईवीएम से चुनाव नतीजे प्रभावित हुए
कि नहीं,
किये जाते हैं कि नहीं या किये गये हैं कि नहीं और अगर किये
गये हैं तो किसके पक्ष में या खिलाफ । मुद्दा यह है कि ईवीएम की सेटिंग की जा सकती
है और इसे भाजपा नेताओं ने ही अपनी दो किताबों से साबित किया है । इसके अलावा, भाजपा के समर्थन से ही इसे हैक करके दिखाया जा चुका है ।
हरि कृष्ण प्रसाद वेमुरु के नेतृत्व में ईवीएम हैक किया गया था । बाद में वे
चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली आंध्र प्रदेश सरकार के तकनीकी सलाहकार रहे और अभी
केंद्र की भाजपा सरकार चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी के समर्थन से चल
रही है । ईवीएम एक मशीन है और उससे इच्छानुसार काम लिया जा सकता है । ऐसे में इससे
मिलने वाले चुनावी नतीजे संदिग्ध हैं क्योंकि उसकी सेटिंग बदलकर नतीजे बदले जा
सकते हैं । इसके बचाव में दो तर्क हैं झ एक तो लाख के सील और दूसरे अधिकारियों की
निगरानी में रहता है । ईवीएम के पक्ष में एक तर्क यह भी गढ़ा गया है और साजिशन
इतना प्रचारित किया गया है कि जाहित याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के
न्यायाधीश, विक्रम
नाथ ने कहा, हृजब
आप चुनाव जीतते हैं, तो ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं होती। लेकिन जब आप हारते हैं, तो ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगाया जाता है। जब चंद्रबाबू
नायडू हारे, तो
उन्होंने कहा कि ईवीएम में गड़बड़ी हो सकती है। अब इस बार जब जगन मोहन रेड्डी हारे, तो उन्होंने भी यही कहा कि ईवीएम में छेड़छाड़ की गई है।
2024 के लोकसभा चुनाव में सीटें कम हुईं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह
पूछकर कि ईवीएम जिन्दा है या मर गया झ ईवीएम का प्रचार और उसका समर्थन किया लेकिन
महाराष्ट्र में मॉक पोल की तैयारी हुई तो सरकार बनने से पहले स्थानीय प्रशासन ने
ही इसे रोक दिया। अगर ईवीएम गड़बड़ नहीं है तो यह सब करने की क्या जरूरत थी ?
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